✍🏻आलेख : धनंजय कुमार सिन्हा
असल मायने में प्रशांत किशोर प्रचार के अच्छे रणनीतिकार हैं, और प्रचार भी राजनीति का ही एक महत्वपूर्ण भाग है। इसलिए बिहार में चार सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में प्रचार के मामले में प्रशांत किशोर अन्य पार्टियों से कहीं भी कम नहीं रहेंगे, बल्कि उन पर भारी ही पड़ेंगे।
बैनर-पोस्टर-स्टीकर की बात करें या छोटे-बड़े सभाओं की, गाड़ियों के काफिलों की बात करें या डोर-टू-डोर कैंपेन की, सोशल मीडिया कैंपेन की बात हो या न्यूज में बने रहने की - इन सबमें प्रशांत किशोर टक्कर में बने रहेंगे या यह भी कहा जा सकता है कि कई जगह वे इन मामलों में अन्य पार्टियों पर भारी पड़ेंगे।
प्रशांत जी के प्रचार-प्लान के एक्टिवेशन में कई छोटी-बड़ी खामियां रह जाने के बावजूद वे इन मामलों में अन्य पार्टियों पर भारी पड़ेंगे क्योंकि अन्य पार्टियों के पास इन मामलों को लेकर कोई ठोस प्लान है ही नहीं। अन्य पार्टियां इन मामलों में जैसे-तैसे तितर-बितर चल रही हैं।
दूसरी तरफ, जहां एक ओर प्रशांत जी की राजनीतिक समझ पर सवाल उठ रहे हैं, जिसमें तरारी में गैर-बिहारी वोटर को उम्मीदवार बनाने की घोषणा करना और बेलागंज में उम्मीदवार चयन के मामले में मिस-हैंडलिंग जैसे उदाहरण हैं जो राजनीतिक मामले में प्रशांत किशोर की कमजोरी को दर्शाते हैं तो दूसरी तरफ अन्य सभी प्रमुख पार्टियों ने इस चुनाव में परिवारवाद की बोझ तले दबा हुआ बहुत ही कमजोर पाशा फेंका है जो प्रशांत किशोर को टक्कर में बनाए रखने में मददगार साबित होगा।
एक तरफ जहां प्रशांत किशोर नीति के मामले में कमजोर हैं तो दूसरी तरफ अन्य पार्टियां पूरी तरह से नीति-विहीन हैं।
इसलिए राजनीति की समझ और नीति के मामलों में कमजोर होने के बावजूद अकेले प्रचार नीति के दम पर ही प्रशांत किशोर इस उपचुनाव में अंत-अंत तक अन्य पार्टियों पर भारी पड़ते हुए दिख सकते हैं क्योंकि अन्य पार्टियां नीति विहीन और परिवारवाद के बोझ तले दबी हुई है। साथ ही, अन्य पार्टियों के पास प्रचार-प्रसार को लेकर भी कोई ठोस सिस्टेमैटिक प्लान नहीं है।
अभी से लेकर चुनाव के दिन तक के बीच में प्रचार के अतिरिक्त बस एक ही महत्वपूर्ण राजनैतिक मामला शेष है जिसे लेकर प्रशांत किशोर को चुनौती और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, और चूंकि वह मामला राजनैतिक है, और अन्य सभी प्रमुख पार्टियां उस मामले में अनुभवी हैं जबकि दूसरी तरफ प्रशांत जी की राजनीतिक समझ पर बार-बार सवाल उठ रहे हैं, इसलिए उस राजनैतिक मामले में प्रशांत जी से चूक होने की पूरी संभावना बन सकती है, और अगर ऐसा हुआ तो प्रशांत जी के लिए वह चक्रव्यूह का सातवां द्वार साबित हो सकता है। यहां पर अन्य प्रमुख पार्टियां फिर से हावी हो सकती हैं।
हालांकि परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन यह अपेक्षा जरूर की जा सकती है कि यह उपचुनाव प्रशांत जी की राजनैतिक समझ को अधिक मजबूत करेगा और उनकी नीति में भी अधिक दृढ़ता लायेगा जो 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनके लिए उपयोगी साबित हो सकता है।