इतिहासकारों के अनुसार वो स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे बाजी राउत.
बाजी राउत का जन्म ओडिशा के ढेकनाल में 1926 एक नाविक परिवार में हुआ था. बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था. इनकी माता ने ही इन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया. रोज़ी-रोटी के लिए वो आस-पास के घरों में काम करती या फिर खेतों में मज़दूरी करती थीं.
वैष्णव चरण पटनायक (लोकप्रिय नाम - वीर वैष्णव) ने एक ‘प्रजामंडल’ नाम का एक दल बना रखा था. अपने इस दल के ज़िरये वो आज़ादी और बगावत की लहर को दूर-दूर तक फैलाते थे.
इस दल में बच्चों को भी शामिल किया गया था. बच्चों की इस टुकड़ी को वानर सेना कहा जाता था. बाजी राउत भी इसका हिस्सा थे. वीर वैष्णव क्रांतिकारी होने के साथ ही रेलवे में बतौर पेंटर काम भी करते थे. वो पूरे प्रदेश में सफ़र कर आज़ादी के लिए लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित करते थे.
अंग्रेज़ों को कहीं से पता चला कि वीर वैष्णव भुवन गांव में छिपे हुए हैं. ब्रिटिश सैनिकों ने तुरंत दबिश दी लेकिन वीर वैष्णव वहां से भागने में कामयाब रहे. सैनिकों ने गांव वालों को ख़ूब प्रताड़ित किया लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला. इसी बीच सैनिकों को पता चला कि वीर वैष्णव ब्राह्मणी नदी को पार भाग गए हैं. उनका पीछा करते हुए वो नीलकांतपुर घाट पर पहुंचे. 10 अक्टूबर, 1938 का दिन था और इस दिन रात को पहरा देने की बारी बाजी राउत की थी.
अंग्रेज़ी सैनिकों ने उनसे नदी पार करवाने को कहा, लेकिन बाजी राउत ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. बार-बार आदेश देने के बाद जब बाजी राउत टस से मस नहीं हुए तो अंग्रेज़ों ने बंदूक के बट से उन्हें मारना शुरू कर दिया. वो घायल अवस्था में चिल्लाने लगे ताकी गांववालों को पता चल जाए. लेकिन जब तक गांव वाले आते अनहोनी हो चुकी थी. क्रूर अंग्रेज़ों ने उन पर गोली चला दी और इससे उनकी वीरोचित् मृत्यु हो गई. गोली की आवाज़ सुन तेज़ी से गांववाले आए. वो बहुत ही ग़ुस्से में थे उन्हें आता देख अंग्रेज़ बाजी राउत की नाव लेकर भाग खड़े हुए.
वीर वैष्णव उनके शव को ट्रेन से कटक ले गए और उनकी शवयात्रा बड़े ही धूम-धाम से निकाली. छोटी-सी उम्र में देश के लिए जान देने वाले इस वीर बालक की शवयात्रा सैंकड़ों लोग शामिल हुए थे.
इस वीर बालक को हमारा शत-शत नमन ।