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Saturday, 15 October 2022

4 साल बाद 23 अक्टूबर को लॉन्च होगा भारत का सबसे भारी रॉकेट, ले जाएगा ब्रिटेन के 36 सैटेलाइट

नई दिल्ली। इसरो का सबसे भारी रॉकेट लॉन्च के लिए तैयार है। यह श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्चपैड पर तैनात कर दिया गया है। यह रॉकेट अपनी बड़ी सी नाक में ब्रिटिश कंपनी का सैटेलाइट ले जा रहा है। इस बार की लॉन्चिंग काफी महत्वपूर्ण होने वाली है , क्योंकि इससे पहले इस रॉकेट की 2019 में लॉन्चिंग हो चुकी है।

  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) दिवाली से एक दिन पहले अपना सबसे भारी रॉकेट लॉन्च करने जा रहा है। इस रॉकेट से ब्रिटिश स्टार्ट अप कंपनी वन वेब का सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा। यह सैटेलाइट दुनिया के अंतरिक्ष से इंटरनेट की सुविधा प्रदान करेगा। इस कंपनी में भारत की भारती एंटरप्राइज़ कंपनी शेयर होल्डर है जो एयरटेल कंपनी से सम्बंध रखती है।

  इसरो के इस रॉकेट का नाम है लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3)। इसे पहले जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (GSLV Mk III) के नाम से जानते थे। इस रॉकेट में वनवेब के 36 सैटेलाइट्स जाएंगे। पूरे मिशन का नाम है- LVM3-M2/OneWeb India-1 Mission. लॉन्चिंग 23 अक्टूबर 2022 की सुबह सात बजे श्रीहरिकोटा के स्पेसपोर्ट से होगी। इसरो के अधिकारियों ने बताया कि रॉकेट के क्रायो स्टेज और इक्विपमेंट बे एसेंबली पूरी हो चुकी है।सैटेलाइट्स को रॉकेट के ऊपरी हिस्से में लगा दिया गया है। आखिरी जांच चल रही है।
    वनवेब के साथ इसरो की डील हुई है। वह इस तरह का दो लॉन्चिंग करेगा। यानी 23 अक्टूबर की लॉन्चिंग के बाद एक और लॉन्चिंग होगी।  माना जा रहा है कि दूसरी लॉन्चिंग अगले साल जनवरी में संभावित है। इस सैटेलाइट्स को धरती के निचली कक्षा में तैनात किया जाएगा। यह ब्रॉडबैंड कम्यूनिकेशन सैटेलाइट्स है। जिनका नाम वनवेब लियो (OneWeb Leo) है  LVM3 रॉकेट की ये पहली व्यावसायिक उड़ान है।

   इससे पहले साल 2019 में इस रॉकेट से चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2), 2018 में GSAT-2, 2017 में GSAT-1 और उससे पहले साल 2014 में क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फियरिक री-एंट्री एक्सपेरीमेंट (CARE) लेकर गया था। ये सारे मिशन देश के थे यानी सरकारी थे। पहली बार कोई निजी कंपनी का सैटेलाइट इस रॉकेट में जा रहा है। अब तक इस रॉकेट से चार लॉन्चिंग की गई है। चारों की चारों सफल रही है। यह इसकी पांचवीं लॉन्चिंग है। LVM3 रॉकेट की मदद से हम 04 टन यानी 4000 किलोग्राम वजन तक के सैटेलाइट्स को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) तक पहुंचाया जा सकता है। 

यह रॉकेट तीन स्टेज का है। दो सॉलिड मोटर स्ट्रैप ऑन लगे हैं। कोर स्टेज लिक्विड प्रोपेलेंट भरा रहता है। इसके अलावा एक क्रायो स्टेज है। आमतौर पर इस रॉकेट के लॉन्चिंग करने पर पौने चार सौ करोड़ रुपये का खर्च आता है। इस रॉकेट की लंबाई 142.5 फीट है। व्यास 13 फीट है। इसका कुल वजन 06.40 लाख किलोग्राम है। 

    LVM3 की मदद से अगर GTO में सैटेलाइट छोड़ना है तो 4000 किलोग्राम वजन तक के सैटेलाइट्स छोड़े जा सकते हैं  अगर सैटेलाइट्स को लोअर अर्थ ऑर्बिट में डालना है तो 10 हजार किलोग्राम तक के सैटेलाइट्स को ले जा सकता है  इस रॉकेट की मदद से अगले साल के पहली तिमाही में चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की लॉन्चिंग की जा सकती है। इतना ही नहीं अगले साल के अंत तक गगनयान (Gaganyaan) के पहले मानवरहित उड़ान का परीक्षण भी इसी रॉकेट के मॉडिफाइड वर्जन से किए जाने की संभावना है।

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