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(रजनीकांत, संपादक) |
2015 में नीतीश ने राजद से गठबंधन किया और चुनाव लड़ा। जितने भी जदयू के सपोर्टर थे उन्होंने राजद के कैंडिडेट को वोट किया गठबंधन के नाम पर। राघोपुर से तेजस्वी यादव ने चुनाव लड़ा, वैसे लोग जो तेजस्वी के धुरविरोधी थे पर नीतीश के सपोर्टर थे उन्होंने मन मारकर तेजस्वी को वोट किया, क्योंकि नीतीश तेजस्वी के साथ थे।
2 साल बाद ही 2017 मे नीतिश राजद को छोड़ भाजपा के साथ आ गए और सरकार बना लिया। अब दिक्कत ये है कि भाई राजद के वोटर्स तो नीतीश को इसलिए वोट दिए क्योंकि वो तेजस्वी के साथ थें और जदयू के वोटर्स तेजस्वी को इसलिए वोट दिए कि वो जदयू राजद के साथ था। पर गठबंधन टूटने के बाद तो जनादेश का कोई वैल्यू ही न रहा।
सिमिलरली यही कहानी फिर से हुआ। सारे वोटर्स जो बीजेपी के थे उन्होंने नीतीश के कैंडिडेट्स को सिर्फ इसलिए वोट दिया क्योंकि वो भाजपा के संग थे। अब दो साल बाद नीतीश भाजपा से अलग जो रहे हैं तो हम जैसे वोटर्स जिनका आस्था भाजपा में हैं, जिन्होंने भाजपा के लिए नीतीश को वोट किया था उनके वोट का अब क्या महत्व रहा जब नीतीश राजद से मिलकर सरकार बना रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से हमारा वोट तो राजद को चला गया न?? फिर ये कैसा लोकतंत्र?
कम से कम चुनाव आयोग अब से वोट जरूर करने की अपील जनता से तब तक ना किया करे जब तक कि उसके वोट की महत्ता तय ना हो जाये। लोकतंत्र की दुहाई देना बन्द करो। मैंने वोट किसी और दल को दिया था लेकिन इस परिस्थिति में मेरा वोट का दुरुपयोग हो रहा है इसका जिम्मेदार कौन है?? मेरे द्वारा नीतिश को दिया गया वोट जदयू के लिए नहीं अपितु भाजपा के लिए था क्योंकि मेरा समर्पण भाजपा के प्रति था। लेकिन इस स्थिति में मेरा वोट राजद के सरकार बनने के पक्ष में जा रहा है। हमारे जनादेश के अपमान का जिम्मेदार कौन है? इसका जवाब दो फिर सरकार का गठन करो वरना मतदान ना करने की मुहिम चलाना हम मतदाताओं की मजबूरी बन जायेगी।