बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर शुक्रवार को हुई करीब 15 विपक्षी दलों की बैठक में अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है।
यह बात सामने आई है कि बैठक में मौजूद पार्टियों के नेता बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए कुछ हद तक समझौता करेंगे। हालांकि, इस बैठक में सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है।
बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक मणिकांत ठाकुर ने कहा कि इस बैठक की एकमात्र उपलब्धि यह है कि कई दल एक मंच पर एक साथ दिखे। उनका मानना है कि इस मुलाकात से सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को हुआ है, जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक्सपोज हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि बैठक की मेजबानी कर नीतीश कुमार ने केंद्रीय राजनीति में अपनी भूमिका बढ़ाने की सोची थी, लेकिन इस बैठक से ऐसा होता नहीं दिख रहा है। विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए शुक्रवार को हुई बैठक के बाद सभी दलों ने कहा कि वे एकजुट हैं और साथ मिलकर लड़ेंगे।
ठाकुर का मानना है, विपक्षी दलों को पूरी तरह से एकजुट करने में कई चुनौतियां हैं। लेकिन, कांग्रेस समझ चुकी है कि इसके बिना विपक्ष की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए बैठक की तारीख बढ़ाई गई थी। इस बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल की मौजूदगी भी अहम रही। उनका मानना है कि शिमला में होने वाली बैठक में कांग्रेस इसका फायदा उठा सकती है।
शिमला में होने वाली बैठक सबसे अहम मानी जा रही है। पटना बैठक के बाद नेताओं ने कहा कि शिमला बैठक में सीट बंटवारे पर भी चर्चा होगी। सीट बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही है।
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार कहते हैं, यह तो बस शुरुआत है। बैठक में जुटे लोगों की राजनीतिक विचारधारा अलग-अलग है। शुक्रवार को हुई पहली बैठक में ही दिल्ली अध्यादेश को लेकर आप और कांग्रेस के हित टकराते नजर आए। अजय कुमार ने कहा कि अगर भविष्य में भी पार्टियों के हित आपस में टकराते हैं तो इससे उनकी एकता की संभावनाओं को धक्का लग सकता है।
उनका कहना है, कई विपक्षी क्षेत्रीय दल हैं, जिनकी कुछ राज्यों में अच्छी स्थिति है, वे इस बैठक में शामिल नहीं हुए हैं। ऐसे दल एनडीए के साथ जा सकते हैं या तीसरे मोर्चे की स्थिति बन सकती है।
यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी दलों की बैठक के बाद अब भाजपा भी सक्रिय होगी। चूंकि महागठबंधन में अधिक दल हैं, इसलिए विवाद की संभावना भी अधिक रहेगी। ऐसे में भाजपा अन्य छोटे दलों को भी अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में होगी। जब भाजपा की सक्रियता बढ़ेगी तो तय है कि मुकाबला भी दिलचस्प होगा।
पटना बैठक के बाद यह बात सामने आई है कि विपक्षी दलों के सामने एकजुट होने की अभी भी कई चुनौतियां हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि अगर विपक्षी दलों के हित टकराते हैं तो कांग्रेस या तो कुछ ही दलों के साथ मैदान में उतर सकती है या सीधे भाजपा से मुकाबला कर सकती है।



