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Tuesday, 9 May 2023

इट्स पार्टी टाइम: हर चुनाव से पहले यूपी में आती है नई पार्टियों की बाढ़, बाद में सब गायब

लखनऊ, 8 मई। उत्तर प्रदेश में चुनाव के समय हर बार कुछ खास होता है - कुकुरमुत्ते की तरह नई पार्टियां बनती हैं और फिर चुनाव के बाद उसी तेजी से गायब हो जाती हैं। चुनावों के दौरान बनी अधिकांश पार्टियों के नाम स्थापित राजनीतिक दलों से मिलते-जुलते होते हैं। ये पार्टियां राज्य निर्वाचन आयोग के पास पंजीकृत हैं, लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त हैं।

उदाहरण के लिए, ऐसी पार्टियां हैं जिनके नाम बहुजन समाज पार्टी से मिलते-जुलते हैं। इनमें बहुजन महा पार्टी, बहुजन मुक्ति पार्टी, बहुजन क्रांति पार्टी और बहुजन विजय पार्टी शामिल हैं।

राज्य चुनाव आयोग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, इनमें से अधिकांश दलों को मुख्य राजनीतिक दलों द्वारा बढ़ाया जाता है ताकि वे इन दलों के नाम पर अतिरिक्त बूथ एजेंट और अतिरिक्त वाहन प्राप्त कर सकें। इनमें से अधिकांश दलों के नाम बड़ी दलों से मिलते-जुलते होते हैं और ये अपने प्रचार की कोशिश नहीं करते, हालांकि कई बार बड़ी पार्टियों के मतदाता के मन में भ्रम पैदा करके ये मुख्य संगठन को नुकसान भी पहुंचाती हैं।

समाजवादी पार्टी से मिलते-जुलते नामों वाले दलों में सुभाषवादी भारतीय समाजवादी पार्टी, भारतीय समाजवादी पार्टी, नवीन समाजवादी दल, संयुक्त समाजवादी दल और राष्ट्रीय क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी शामिल हैं।
यूपी राज्य चुनाव आयोग के पास पंजीकृत 127 पार्टियों में हाई-टेक पार्टी, राइट टू रिकॉल पार्टी, आधी आबादी पार्टी, सबका दल यूनाइटेड, विधायक दल, लोग पार्टी, बहादुर आदमी पार्टी, अपनी जिंदगी, अपना दल, इस्लाम पार्टी और गदर पार्टी जैसी पार्टियां हैं।

हिंदू एकता आंदोलन पार्टी, इस्लाम पार्टी हिंद और अंबेडकर क्रांति दल जैसे धार्मिक लगने वाली पार्टियां भी हैं। हालांकि नगर निगम चुनाव में इन पार्टियों के प्रत्याशी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। पिछड़ा वर्ग महापंचायत पार्टी (पीवीएमपी) ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में अपने चुनाव चिह्न् के रूप में माचिस की तीली के साथ चुनाव लड़ा था।

पार्टी ने ओबीसी का समर्थन करने का दावा किया जिनके साथ लगभग सभी दलों ने विश्वासघात किया है और कहा कि वह सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पीवीएमपी चुनावों में कोई लहर बनाने में विफल रही और इसका प्रदर्शन रिकॉर्ड करने लायक भी नहीं था। इसके बाद पार्टी राजनीतिक क्षितिज से गायब हो गई।
बॉलीवुड अभिनेता राजपाल यादव के नेतृत्व वाली सर्व संभव पार्टी (एसएसपी) का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ। एसएसपी 2017 में राज्य में चुनाव मैदान में उतरी थी। राजपाल यादव ने तब एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, मैं अपने दोनों भाइयों को एक दशक से अधिक समय से राजनीति में प्रशिक्षित कर रहा हूं, अब वे गोता लगाने के लिए तैयार हैं।

हालांकि, अभिनेता ने स्वीकार किया कि उनकी पार्टी इस बार एक भी सीट नहीं जीत सकती है, लेकिन कहा कि वह अगले लोकसभा या विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, जब तक हमारे लिए सही समय नहीं आता, हम अपनी विचारधारा को लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करेंगे।
उसके बाद एसएसपी या उसके नेताओं के बारे में कुछ नहीं सुना गया। राज्य चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण अक्सर गलत मंशा से किया जाता है।

उन्होंने कहा, चुनाव आयोग को उन दलों को प्रतिबंधित करना चाहिए जो खुद को पंजीकृत करते हैं और फिर चुनाव नहीं लड़ते हैं या यहां तक कि एक निश्चित संख्या में वोट भी प्राप्त करते हैं। इनमें से कई संगठन अपने एजेंटों और वाहनों को आउटसोर्स करके चुनाव के दौरान अच्छा पैसा कमाते हैं। ऐसे मामलों में उन पार्टियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

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