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Friday, 16 December 2022

बिहार : जीर्णोद्धार की आस में टूट रही गोपालगंज के माझा गढ़ किले की सांस

गोपालगंज। (अनूप नारायण सिंह)। आमतौर पर राजा, महाराजा, रानी और भूत प्रेतों की कहानी आप को भी आकर्षित करती होगी। ऐसी ही एक कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं बिहार के गोपालगंज जिले के माझा गढ़ की। जहां का किला बिहार के मौजूदा सभी राजा-रजवाड़ों के किले से अनूठा था। इस किले के तीन तरफ पानी और एक तरफ जाने का रास्ता था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सन 1828 में माझा गढ़ के राजा कुमार माधव सुरेंद्र साही ने इस किले का निर्माण करवाया था। राजा सुरेंद्र शाही ने अपने दुश्मनों से बचाव के लिए इस किले को उस जमाने में 9 मंजिला बनाया था और किले में कई तहखाने थे।

जिससे पानी के अंदर से ही तहखाने के माध्यम से सैनिक, गुप्तचर और राजा स्वयं किसी दूसरे किले में जा सकते थे। स्थापत्य कला का यह वृहत नमूना राजमहल अपने आप में अनूठा था। इस राजमहल को लेकर कई तरह की कहानियां भी इलाके में प्रचलित है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सन 1934 में बिहार में आए भयंकर भूकंप किले के किले को ध्वस्त कर दिया और 9 मंजिले किले की 7 मंजिल इस भूकंप में ध्वस्त हो गई। उसके बाद राजा सपरिवार दूसरे किले में चले गए और किले के दुर्दिन शुरू हो गए।

 कहा जाता है इस किले के निर्माण को लेकर कई तरह के टोने टोटके किए गए थे। कुछ लोग कहते हैं किले पर गिद्ध बैठ गया था इसी कारण से राजा ने इस किले को छोड़ दिया। स्थानीय झंकार बना बताते हैं कि इस किले का निर्माण पहले कोईनी बाजार के पास होने वाला था। 
जिसको लेकर तांत्रिकों के द्वारा टोना टोटका किया गया था और एक बड़े पोटली में चने की दाल को रख दिया गया था। जिसे सियारों के समूह ने उठाकर जहां यह महल बना हुआ है वहां लाकर रख दिया। इसे शुभ माना गया और माना गया ईस जगह पर महल का निर्माण होगा। जिसके बाद उसी जगह 1828 में बिहार के इस अनूठे 9 मंजिले किले का निर्माण हुआ।
अब इस किले में जहरीले सांप और जीव-जंतुओं का बसेरा है। कई सारे बरगद के विशाल वृक्ष किले में उग आए हैं। यह विशालकाय किला और इसकी कृति सिर्फ कथा कहानियों में जीवित है और अपनी अंतिम सांस गिन रहा है। आज भी किले के चारों तरफ पानी है और एक तरफ से जाने का रास्ता है।
किले की देखरेख किसी के द्वारा नहीं की जाती है। पर्यटक आते हैं और निराश होकर चले जाते हैं। पल-पल जमीनदोज होने की तरफ बढ़ रहे इस स्थापत्य कला के अनूठे धरोहर को बचाने के लिए ना राजघराने और ना ही जिला प्रशासन के तरफ से कोई पहल की गई है। अगर समय रहते इस किले के संरक्षण पर ध्यान दिया जाएगा तो यह पर्यटक और इतिहास भी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहेगा।

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