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Saturday, 17 September 2022

बिहार के लिए सियासी मुद्दा बनकर रह गया विशेष राज्य का दर्जा!

पटना/बिहार, 17 सितंबर। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होने के बाद एक बार फिर से बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे को छेड़ दिया है। बिहार की राजनीति में अब यह कहा जाने लगा है कि विशेष राज्य का दर्जा केवल सियासी मुद्दा बनकर रह गया।

वैसे, इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग काफी पुरानी है, लेकिन अब कहा जाने लगा है कि सभी दल सुविधानुसार इस मांग के जरिए इस मुद्दे को हवा देकर बिहार के विकास के जरिए शुभचिंतक बनने की कोशिश करते हैं।

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में लगे नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान गुरुवार को कहा था कि वह बिहार को शुरू से ही विशेष राज्य दर्जा देने की मांग करते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इस मांग को उन्होंने कभी छोड़ा नहीं है और वह इसकी निरंतर मांग करते रहे हैं, इसके लिए अभियान तक चलाया है और सरकार के स्तर से भी मांग की गई है।

उन्होंने कहा की अगर इन लोगों की जगह पर सरकार बनाने का मौका मिला और जैसा कि हम लोग चाह रहे हैं कि विपक्ष के ज्यादा से ज्यादा दल एकजुट होकर अगला लोकसभा चुनाव लड़े और सरकार बनी तो निश्चित रूप से बिहार ही नहीं अन्य पिछड़े राज्यों को भी वह सरकार विशेष राज्य का दर्जा देगी।

इधर, नीतीश कुमार द्वारा विशेष राज्य के दर्जे पर दिए गये बयान पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि जब पूरे देश से विशेष राज्य का दर्जा वाला शब्द सदा के लिए समाप्त कर दिया गया तब नीतीश इस मुद्दे करने का नाटक कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वे स्वयं केंद्रीय मंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी विशेष राज्य का दर्जा 10 वर्षों के लिए अलग हुए कमजोर प्रदेशों को दे रहे थे, तब नीतीश ने यह होने नहीं दिया। उनके पूर्व सांसद एनके सिंह 15 वें वित्त आयोग के चेयरमैन थे, जिसकी अनुशंसा 2021 से 26 तक के लिए है, तब भी उन्होंने इस पर कुछ नहीं कहा।

डॉ जायसवाल ने कहा कि पिछले 8 वर्षों से राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दी गई है। आज सभी राज्यों को केंद्र की राशि से 10 फीसदी हिस्सेदारी ज्यादा मिल रही है। नरेंद्र मोदी के जीएसटी लागू करने से औद्योगिक राज्यों को जहां घाटा हुआ है वहीं बिहार जैसे उपभोक्ता राज्यों को जबरदस्त फायदा हुआ है क्योंकि अब टैक्स, जहां सामान बिकता है उसी राज्य को मिलता है।

उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि बिहार से बड़े राज्य मध्य प्रदेश से 32,000 करोड रुपए बिहार को केंद्रीय सहायता के रूप में हर वर्ष ज्यादा मिलता है। एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की गति शक्ति योजना बिहार को मिली है। अगर यह ईमानदारी से लागू किया जाए तो लाखों लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।

वैसे देखा जाए तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कोई नई नहीं है। लेकिन इस मुद्दे को लेकर यहां राजनीति भी खूब हुई है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि राज्य में जदयू इस मांग को बिहार की जनआकांक्षा से जोड़कर इसे राज्य के हर तबके के पास पहुंचाने में सफल रही है। जदयू ने इस मांग को लेकर न केवल बिहार में, बल्कि दिल्ली तक में अधिकार रैली निकाली थी।

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